Respuesta :
See below
Step-by-step explanation:
उत्तम गाय के लक्षण निम्नलिखित हैं |
1. रंग – सर्वांग काली-श्याम एवं कपिला गाय सर्वोत्तम मानी जाती है. लाल, बादामी या चितकबरे रंगवाली गाय भी श्रेष्ठ मानी गई है. सफेद मोतिया या भूरे रंग की गायें भी अच्छी होती है.
2. चर्म – पतला, चिकना और रेशम-सा नर्म बलोंदार हो.
3. ऊंचाई – जाति के अनुसार बड़े कद की हो.
4. लम्बाई – शरीर लम्बा और छाती चौड़ी होनी चाहिए.
5. सिर – छोटा, मस्तक चौड़ा और गर्दन लम्बी व पतली हो, किन्तु साहिवाल आदि नस्ल के गोवंश भारी तथा छोटी गर्दन वाले होते है.
6. सींग – चिकने तथा जाति (नस्ल) के अनुसार आकार वाले हों. कपिला गाय के सींग हिलते तथा नीचे की ओर झुके हुए व चपटे होते है.
7. कान – उभरे हुए और बड़े हो. उनके भीतर की चमड़ी मुलायम तथा पीले रंग की हो.
8. ऑंखें – साफ, बड़ी, ममतामयी एवं स्निग्ध हो.
9. नाक – साफ हो और उससे पानी न बहता हो.
10. होंठ – कोमल, सटे हुए एवं ताम्बे के से लाल रंग के हो.
11. दांत – सफेद मजबूत तथा कीड़े- रहित हों.
12. जीभ – साधारण लम्बी, कुछ लाल-सी, मुलायम एवं कांटे रहित हो.
13. गला – साफ, सुरीला एवं ऊंचे स्वरवाला हो.
14. पूंछ – पतली, काली चौरी वाली और जाति के अनुसार लम्बी हो. सफेद चौरी वाली लक्षण अधिकतर नस्लों में दोष माना जाता है. किसी नस्ल का ही अच्छा होता है.
15. पुट्ठे – चौड़े, खुले हुए, स्थूल और ऊंचे हो.
16. धुन्नी (पेट के नीचे की चमड़ी) – बड़ी, फैली हुई और मुलायम हो.
17. जांघे – चौड़ी और फासले पर हो.
18. पैर – सुडौल, मजबूत एवं लम्बे हो, परंतु चलते समय आपस में न लगते हो.
19. खुर – सटे हुए, गोल एवं मजबूत हों और इनके भीतर की चमड़ी पीली व मुलायम हो.
20. ऐन – खुला, चौकोर, चौड़ा तथा बड़ा हो. अगले पैरों की तरफ से उभरी हुई रस्सी के आकार की दूध की नसें ऐन की ओर आती दिखाई पड़ती हो.
21. थन – लंबे, मुलायम और दूर-दूर हो. चारों थान एक-से तथा बड़े हों.
22. शरीर – नीरोग तथा भरा हुआ, किन्तु मोटा न हो. वस्तुतः मोटी गाय में केवल मांस ही ज्यादा बढ़ जाता है. जिससे उसकी दूध देने की शक्ति कम हो जाती है.
23. पसमाव (दूध का बहाव) – एक-सा और मोटी धार का हो एवं बर्तन से टकराकर घर-घर की-सी गंभीर ध्वनि करने वाला हो.
24. दूध – पीली झलक वाला और गाढ़ा हो.
25. स्वाभाव – गंभीर, सीधा, प्रेममय एवं उत्तेजना-रहित हो. वह ऐन के छूने पर क्रोध न करने वाली और सबसे सरलतापूर्वक दुहा लेने वाली हो.
26. चाल – मंद और सीधी हो.
27. ज्ञातवंशज – दुधारू गायों तथा बलिष्ठ सांडों के कुल की हो.
28. रूचि – सभी किस्म के अच्छे चारे-दाने को रुचिपूर्वक खाने वाली हो.
29. गलकम्बल एवं ककुंद – झालदार हो और ककुंद पूर्ण विकसित हो.
कहा गया है –
उदर, कुक्षि, कूल्हे दोऊ, माता, छाती, पीठ. ऊँचे उभरे अंग छै, यह शुभ लच्छन दीठ.
युगल नेत्र अरु कर्ण हों, विस्तृत और सामान. मस्तक ऊँचों लेखिये, सब विधि उत्तम जान.
गलकम्बल, गर्दन तथा, पूँछ रु थन दोऊ रान. लम्बे चौड़े अंग लखि, उत्तम कहत सुजान.